رفتن به مطلب
مرورگر پیشنهادی آرساکیا گیم مرورگر های تحت موتور کرومیوم می‌باشد، برای دانلود روی مرورگر انتخابی خود کلیک کنید
Google Chrome Microsoft Edge Ungoogled Chromium Brave Opera GX Opera

AsirAm

عضو
  • تعداد ارسال ها

    1825
  • تاریخ عضویت

  • آخرین بازدید

  • روز های برد

    3
  • حمایت مالی

    0 تومان 

پست ها ارسال شده توسط AsirAm

  1. در 3 دقیقه قبل، Horny گفته است:

     

    یادمه که رفتی شکایت کردی مثل کوچولو های گوگولی سرور

    ولی به هر حال اینکه فهمیدی منظورم تویی بسه ?

    داداشم رفته بود =|

    در 3 دقیقه قبل، Horny گفته است:

     

    یادمه که رفتی شکایت کردی مثل کوچولو های گوگولی سرور

    ولی به هر حال اینکه فهمیدی منظورم تویی بسه ?

    ?

    در در ۱۴۰۰/۵/۱۸ در 12:44، Horny گفته است:

    ag-sa-0235_v4sd.jpg

     

    به اخری زیاد توجه نکنید 

    این MHI

    bandicam_2021-08-10_13-46-32-636_c74b.jp

     

    :| Flap

  2. در 2 ساعت قبل، RaaD گفته است:

     

    چشامون بسته و نیمه باز

    بردن تو تقدیر تیم ماست

    زن تو حرف پول
    چون ما شاهرگیمو چاقال تو لخته خون
    بین * که باسنی داشم
    روا شد هر کی حاجتی داشت رفت
    بیزیم تعصبیم بیز آذریاشم
    هنو یه تهرونه و یه حاج علی داشم )=)

  3. در 13 دقیقه قبل، NiCuLaS گفته است:

    تو ام گوهی حاجی ولی ادا نوتلا 

    جلو ما که دایی نقش بازی نکن تو الگویی زاخار ولی برا مودلا 

    نمیخوری هیچ جوره عمو اره تو ام بزنی ولی تو گووشه حموم.

    وات فاک واد فاک..... ?

  4. در در ۱۴۰۰/۵/۱۱ در 14:07، Plato گفته است:

    AG_SA_0000.jpg

    هعی روزگار ;)

     

    InkedAG_SA_0351_LI.jpg

     

    در در ۱۴۰۰/۵/۱۱ در 15:05، OmidGH گفته است:

     

    در در ۱۴۰۰/۵/۱۱ در 15:34، Reduce گفته است:

    عکسا قدیما پاک شده :| ag-sa-0105_z8e3.jpg

    ag-sa-0287_aumw.jpg

     

    در در ۱۴۰۰/۵/۱۱ در 15:42، CaKe گفته است:

    من که بخاطر ویندوز عوض کردن کلی SS های جالبی از گذشته داشتم که متاسفانه ندارمشون

    ولی ماله چند ماه قبل دارم که میزارم براتون?

     

    اولین اسکرین شات: اینجا Event بود یکی دیگرو داشتم میزدم که کناریه هم بخاطر من مرد [یک تیر و دو نشون]?

    23bn_ag-sa-0003.jpg

    آخرین اسکرین شات: میخواستم F7 بزنم اشتباهی دستم به F8 خورد?

    1qgg_ag-sa-0023.jpg

     

    در در ۱۴۰۰/۵/۱۱ در 16:25، iNepTuN گفته است:

    اولی ( بسیار نوووب )

     

    ag-sa-0000_eb93.jpg

     

    آخری ??

     

    ( دیشب تو فکر پیدا کردن باگ توی jail بودم )

     

    ag-sa-0252_fbes.jpg

     

     

    در در ۱۴۰۰/۵/۱۱ در 17:19، 9Hess گفته است:

    اولین : داشتم با سلطان ام عشک میکردم

    ag-sa-0000_yvj0.jpg

    آخرین: ag-sa-0793_9gls.jpg

    امروز برنده اعلام میشه !!

  5. در در ۱۴۰۰/۳/۲۵ در 00:02، iAriyaN گفته است:

    با سلام خدمت اون دسته از عزیزانی که سینگل ب گور موندن موندن و میخان برا خودشون آستین بالا بزنن خب ما این کارو به صورت رایگان انجام میدیم فقط کافیه عکس از اطلاعات کاربری کراش مورد نظر خود را  Pm بفزستید و با هماهنگی وقت قبلی آستین براتون بالا بزنیم خب شاید فکر کنید که من نتونم خب یه شرطی میزاریم اگه ما براتون آستین بالا نزدیم 1,5 ملییون وجه نقد به شما میدیم 

    کسانی که شاهد اینکار بودند از جمله:

    @Taaj

    @KARiM

    @GaMeRsInan

    @Troll

    و غیره هستند که من نیک فرومشون رو نمیدونم

    برای هماهنگی با ما در فروم در ارتباط باشید

     

    از کسانی که تگ شدند درخاست دارم یه مورد این کار خیر تعریف کنند با تشکر.

    واس ما یه چیزشو جور کن =|

  6. در 3 ساعت قبل، RaaD گفته است:

    اگه قرار باشه یه متن رو روی بدنتون دائمی تتو کنین

    کدوم متنو انتخاب میکردین؟

    (خیلیا مث خودم از تتو خوششون نمیاد ولی فرض کنین قراره تتو کنین :| )

     

    خودم:

    من اهل جای دیگم

    خداشونو دیدم

    محبتی توش بود که درج شد تو سینم

    صادق

     

    (تگ نمیکنم ببینم چند نفر میبینن تاپیکو)

    Ali Daie -( ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًً

  7. در 37 دقیقه قبل، Shollmaqz گفته است:

    #@ّۀمالًًًًًًًًّ

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًً

    • مرسی 1
  8. در 11 دقیقه قبل، Shollmaqz گفته است:

    #جونزم

    #ٍريالُةژإًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًإًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً إًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    • دوست دارم که 1
    • هاها 1
  9. در 4 ساعت قبل، RiPMoHammaD گفته است:

    کدومو؟

    اوکی اون لینکش دیروز خراب شد خودم برات آپلود کردم.

    کلیک!

    با برنامه img tool فایلِ gta3.img رو باز کن بعد wuzimu.txd و wuzimu.dff رو جایگزین کن.

    سوکوت ? نمیخوری هیچ جوره عمو
    آره توام بزنی ولی توو گوشه حموم
    چشامون سنگین و نیمه باز
    بُردن توو تقدیر تیم ماس
    نزن تو حرف پول
    چون ما شاهرگیمو چاقال تو لخته خون

     

    شما خوشه دلتون به چی مدم کلتو بکنن تو کف طیمون بشی پا به خفتت خوبه ...... XD آبگوشت چیه؟ حق نگو موعمن =| میدم برات بیارن برات کومپووت ? هلووو

    +موز و خیار

  10. در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 20:24، RiPMoHammaD گفته است:

    مگه موزه؟

    نه بابا خیاره =|

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 22:35، StoneHeart گفته است:

    میدونی چرا؟؟؟

    چون ماله منی ?

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 22:24، Mahi گفته است:

    شدت سمش پایین بود فقط ?

    پشمام =| چشمام =| این سرطان بود

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 16:38، Shollmaqz گفته است:

    پسر ایرانو ببین ب مولا?چ کارایی ک نمونده  اینا انجام بدن??‍♂️

     

    خوشم اومد??

    ghelion.gif

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 20:08، NiCuLaS گفته است:

    قشنگ بود 

     

    ? ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 13:59، Norvis گفته است:

    100درصد????

    ? ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 13:53، SajAli گفته است:

    ????

    xD ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    در در ۱۴۰۰/۵/۹ در 13:44، Farab گفته است:

    خاطرشو زنده کردی ?

    انقد ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًنًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًخند =|

     

    @RoseRain کامنت شما هاید شده :| WTF

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً?ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

     

    @RoseRain کامنت شما هاید شده WTF

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

     

    @RoseRain کامنت شما هاید شده WTF

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

     

    @RoseRain کامنت شما هاید شده WTF

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

     

    @RoseRain کامنت شما هاید شده WTF

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

     

    @RoseRain کامنت شما هاید شده WTF

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

    ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً ًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًًً

×
×
  • اضافه کردن...